भूखे बच्चों की तसल्ली के लिए, माँ ने फिर पानी पकाया देर तक!"सत्ता का सत्य उतना ही चिरंतन है, जितना सत्य की सत्ता का अनुभव. हा सत्ता के पीछे एक तरह की शक्ति क्रियाशील रहती है. मनुष्य अपनी आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए जब कभी अपने से बाहर किसी अन्य सत्ता पर निर्भर करता है, उसे उसका मूल्य चुकाना पड़ता है. तब उसका मनुष्यत्व ईकाइयों में विभाजित होने लगता है. यह कहना भी कठिन लगता है कि उसकी अपनी एक अखंडित अस्मिता है-उसके भीतर उसकी 'अस्मिताए' कभी एक-दूसरे से अनजान, कभी आपस में टकराती हुई कायम रहती है."

Monday 21 September 2009

भारतीय चावल विषैला: इरान

अपने देशवाशियों के लिए, ईरानियों के लिए या किसी अन्य देश को प्रदूषित अन्न मुहैया कराना सरकारी और कारपोरेट गैरजिम्मेदारी का एक घिनोना चेहरा उजागर करता है. कुछ साल पहले जब कीटनाशको को बोतल के पानी में पाया गया तो संसद और संसद के बाहर ऐसा हंगामा मचा की लगा की सरकार के होश अब ठिकाने जरुर आ जायेंगे. लेकिन प्रदुषणमुक्त भोजन और पानी को लेकर जो कौन बनी वो इतनी कमजोर बनी की उससे खेतो को उससे बाहर रखा गया. प्रदुषणमुक्त भोजन के लिए यह जरुरी था की खेत से लेकर रसोईघर तक उन सब प्रदुषण कारको को काबू में किया जाए जो कभी कीटनाशक के नाम पर, कभी रासायनिक खाद के नाम पर तो कभी प्रदूषित पानी का सिंचाई के नाम पर बेकाबू हो गया है. ऐसा नहीं हुआ और नतीजा यह है की अब भारत सरकार द्वारा की गयी लचर व्यवथा की पोल इरान की प्रयोगशाल में खुल गयी है. पहेले पानी में, फिर कोला में, फिर दूध में, फिर सब्जियों में, और अब बासमती चावल में विषैले प्रदुषण तत्वों का पाया जाना भारत सरकार की जन स्वास्थय के प्रति असंवेदनशील नीतियों का पर्दाफास करता है.

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